हिंदी भाषा
मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में भाजपा की हिंदी भाषा का विवाद भाजपा पर उछाल देगा। एक भाषा के लिए एक राष्ट्र के नारा 100 साल पहले यूरोपीय पुनर्गठन के दौरान पर लाया गया था। उस समय पुराने राज्यों के टूटने के बाद क्षेत्रीय भाषाई राष्ट्रों का गठन वहा किया गया था। लेकिन भारत यूरोप से अलग है। श्री जवाहर लाल नेहरु और उनके सहायकों द्वारा एक क्षेत्रीय और सांस्कृतिक इकाई के रूप में भारत एकजुट हुआ था। हालाँकि, बाद में 1956 में भारत में भाषाई राज्यों का गठन हुआ। यह 1953 में भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य बनने के बाद हुआ। (Hindi language)
See Article 343 on Official languages of India
यदि श्री शाह सभी गैर-हिंदी भाषी भारतीयों पर हिंदी थोपने पर आमादा हैं, तो उन्हें पहले ये चीज गुजरात और महाराष्ट्र से परियोजना शुरू करना अच्छा है। अगर वह वहां सफल रहा तो वह इसे अन्य क्षेत्रों में बढ़ा सकता है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह सफल होगा।
बीजेपी अब इस मुद्दे को उठा रही है, जिससे लोग देश के असली मुद्दों से ध्यान भटका सकें। एक और उद्देश्य होगा हिंदी प्रचारकों को खुश रखे। बीजेपी को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि यह भारतीय गणराज्य के संघीय ढांचे को कितना नुकसान पहुंचाएगा।
यूट्यूब में मेरा वीडियो देखें
यह पेज भी पढ़लिजिए
आइए हम समझते हैं कि वर्तमान समय में एक राष्ट्र एक भाषा की अवधारणा दुर्भावनापूर्ण है। सभी गैर-हिंदी भाषी लोग अंडमान के आदिवासियों की तरह अपनी भाषा के बिना नहीं रह रहे हैं।
भारत में हर भाषाई समूह की अपनी सांस्कृतिक विरासत है। हिंदी की खातिर कोई भी अपनी पहचान खोने को तैयार नहीं है। भारत में लगभग 9 करोड़ तेलुगु और 9 करोड़ बंगाली हैं। 7 करोड़ तीस लाख मराठा, 5 करोड़ गुजराती, 4 करोड़ राजस्थानी, 4 करोड़ कन्नडिगा और 7 करोड़ तमिल भारत में रहते हैं।
और भारत में तथाकथित हिंदी बहुमत एक धोखा है। उत्तरा प्रदेष की कुल जनसंख्या 20 करोड़ है, बिहार में 10 करोड़, मध्यप्रदेश में
इन सभी लोगों को हिंदी भाषी कहना ठीक नहीं है। लेकिन ये सभी हिंदी नहीं बोलते हैं। इन लोगों पर वास्तव में हिंदी भाषा थोपी गई है। कई भाषाई समूह हैं जो अपनी विशिष्ट क्षेत्रीय भाषा बोलते हैं। उदाहरण के लिए, अवधी भाषा 4 करोड़ लोग बोलते है, मैथिली 3.80 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है, भोजपुरी 4 करोड़, मगधी 1.40 करोड़, और हरियाणवी 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। राजस्थान की 6.80 करोड़ की आबादी में से 5 करोड़ लोग राजस्थानी भाषा बोलते हैं।
इसलिए बहुसंख्यक भारतीयों द्वारा हिंदी बोली जाती है जो नारा केवल एक गलत प्रचार है, बल्कि एक धोखा भी है।
राष्ट्र को अपने अस्तित्व के लिए एक आधिकारिक भाषा की आवश्यकता जरूर नहीं है। भारत 70 से अधिक वर्षों से एक आधिकारिक भाषा के बिना अस्तित्व में है। और हम स्विट्जरलैंड का उदाहरण भी लेते हैं। यह एक छोटा यूरोपीय देश है।
इसकी कुल आबादी लगभग 86 लाख है। उनमें से 62% जर्मन हैं, 23% फ्रेंच हैं, 8% इतालवी हैं और 0.50% रोमन हैं। ये सभी 4 भाषाएँ स्विट्जरलैंड की राष्ट्रीय भाषाएँ हैं। हालांकि, उनमें से तीन, जर्मन, फ्रेंच और इतालवी आधिकारिक भाषाएं हैं। स्विट्जरलैंड के सभी सरकारी व्यवहर तीनों आधिकारिक भाषाओं में संचालित किए जाते हैं। ताकि स्विट्जरलैंड में रहने वाले जर्मन, फ्रांसीसी और इतालवी अपनी संस्कृतियों को बचाए रखें।
यह पेज भी पढ़लिजिए
- जवाहरलाल नेहरू 1889-1940
- महात्मा गांधी 1869-1915
- डॉ। सर्वॆपल्लि राधाकृष्णन
- मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
वास्तव में संविधान के अनुसार हिंदी को भारतीय गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था क्योंकि हिंदी ने एक वोट बहुमत से जीता जीता था। आप जानते हैं कि किस भाषा ने हिंदी को टक्कर दी। यह हिंदुस्तानी है। तेलुगु नहीं। बंगाली नहीं।
अब भारत में 22 राष्ट्रीय भाषाएँ हैं। हिंदी राजभाषा है। और राज्यों की अपनी अपनी अलग अलग आधिकारिक भाषाएं हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में आधिकारिक भाषा के रूप में बंगाल है।
पंजाब की आधिकारिक भाषा पंजाबी है। मुझे लगता है कि यह भाषा प्रश्न हमेशा के लिए हल हो सकता है अगर हम स्विट्जरलैंड के उदाहरण का अनुसरण कर सकते हैं तो। में सुझाव देता हु की राज्यों की सभी 22 राष्ट्रीय भाषाओं को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित करें? हम कंप्यूटर के युग में जी रहे हैं। भारत के लिए बहु आधिकारिक भाषाओं के शासन में बदलने के लिए ज्यादा समस्या नहीं होगी।
और तेलुगु भारत में सबसे अधिक आबादी वाली भाषा है। तेलुगु 9 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। तेलुगु ज्यादातर आंध्र और तेलंगाना क्षेत्रों के अलावा दक्षिणापथ के अन्य भाषाई लोगों द्वारा समझी और बोली जाती है। यहां तक कि बिहार और बंगाल क्षेत्र भी तेलुगु को अच्छी तरह समझते हैं। तेलुगु को भारत की आधिकारिक भाषा क्यों नहीं बनाया सकता है?
और मेरा एक और सुझाव ये है की, हिंदी की अपनी लिपि नहीं है। यह देवनागरी लिपि को अपनाता है। तेलुगु लिपि दुनिया में अत्यधिक विकसित लिपि के रूप में प्रतिष्ठित है। तो क्या हिंदी के समर्थक हिंदी भाषा के लिए तेलुगु लिपि को अपनाने के लिए सहमत होंगे?
भाषा लोगों की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। भारत बहुभाषी और बहु धर्म विशेषताओं वाला एक अनूठा देश है। भारत एक राष्ट्र के रूप में 70 से अधिक वर्षों तक जीवित रहा क्योंकि इसके संविधान किसी भाषाई या धार्मिक हठधर्मिता का गुलाम नहीं । श्री जवाहर लाल जी और उनके सहायकारों को धन्यवाद। अतः यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने संविधान को उसके वर्तमान स्वरूप में बनाए रखें और संविधान का मूला के सिद्धांतों को नष्ट मत करो ।
ALSO READ MY ARTICLES ON
- Indian Constitution
- Fundamental Rights
- Basic Structure of the Constitution
- Article 20
- Right to Life and Liberty
- Magna Carta
- England Bill of Rights
- American Bill of Rights
- French Bill of Rights